हिमाचल प्रदेश के *हिमाचल दस्तक* के रविवारीय परिशिष्ट ( संडे रिमिक्स) में प्रकाशित मेरा एक बालगीत ( होली के सुअवसर पर)
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मच्छर जी की होली
मच्छर जी से परेशान थे
हाथी दादा।
रोज काटते थे मच्छर जी
कानों पर चिल्लाते थे
लौट-लौट फ़िर आ जाते
जब दादा उन्हें भगाते थे
मच्छर जी के मन बैठा था
ग़लत इरादा।
दादा ने इक जुगत लगाई
जब दिन होली का आया
यही समय है सबक सिखाने का,
ख़ुद को यह बतलाया
भरा सूँड़ फ़िर रँग-पानी से
आधा-आधा।
जोर लगाकर उसे उछाला
मच्छर सर जी के ऊपर
टकराकर दीवारों पर
मच्छर जी ने खाए ठोकर
ऊधम नहीं मचाते अब
मच्छर जी ज़्यादा।
- अनुज पाण्डेय
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